समझौता यानी मजबूरी का नाम। हममें से ज्यादातर यही सोचते हैं। कंप्रोमाइज करने के लिए हम आसानी से तैयार नहीं होते। मन में गुस्सा और कड़वाहट रहती है। हम बुरा महसूस करते हैं। पर क्या समझौतों के बगैर जिंदगी संभव है? कहीं ऐसा तो नहीं कि खुद के साथ या फिर दूसरों से तालमेल बिठाने की हर जरूरी कोशिश को हम समझौते के चश्मे से देखने लगे हैं। समझौता करना हमेशा बुरा नहीं होता इसी पर आज की तेरी-मेरी बात|
बदलाव प्रकृति का नियम है
अपने काम से खुश रहना सीखें
ना मन छोटा करें ना दिल खोटा
मन जब कर रहा हो बहुत ज्यादा तंग
दिन को थोड़ा आसान बनाएं
आइए खुद को फिर से रीइेंवेंट करते हैं
अपना ध्यान तो रखना ही होगा
जब पीड़ा की हो कई परतें
तनाव को खुशी में बदलिए
जिएं जिंदगी का हर रंग
51: इतना खराब भी नहीं है गुस्सा
50: कैसे बनाएं माइंड को फ्लैक्सिबल
49: आगे बढ़ने से लगता है डर!
48: आप भी हैं बड़े दिलवाले
47: जब हर कोई हो बहुत बिजी
45: लोग क्या कहेंगे!
44: काम करने का हाइकु तरीका (हाइकु प्रोडक्टिविटी)
43: इन जरूरतों में भी कीजिए कमी
42: धुंध भी हटेगी और धूप भी खिलेगी
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