मेघ-गीत
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मेघ-गीत

2010-03-23
उमड़ते-गरजते चले आ रहे घन घिरा व्योम सारा कि बहता प्रभंजन अँधेरी उभरती अवनि पर निशा-सी घटाएँ सुहानी उड़ीं दे निमन्त्रण ! . कि बरसो जलद रे जलन पर निरंतर तपी और झुलसी विजन-भूमि दिन भर, करो शान्त प्रत्येक कण आज शीतल हरी हो, भरी हो प्रकृति नव्य सुन्दर ! . झड़ी पर, झड़ी पर, झड़ी पर, झड़ी हो, जगत मंच पर सौम्य शोभा खड़ी हो, गगन से झरो मेघ ओ! आज रिमझिम, बरस लो सतत, मोतियों-सी लड़ी हो ! . हवा के झकोरे उड़ा गंध-पानी मिटा दी सभी उष्णता की निशानी, नहाती दिवारें नयी औ’ पुरानी
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