महान अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरौ (1253-1325 CE) की स्मृति में ।
अमीर खुसरो के इस गीत को बेहतरीन आवाज़ दी है, हिन्दुस्तान के अव्वल सू्फ़ी गायक उस्ताद मेराज निज़ामी ने, आप दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (1236-1325) की दरगाह के निकट रहते है, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया खुसरो के गुरू थे।
इन शब्दों में गुरू महिमा, और उससे प्रेम का अलौकिक प्रस्तुतीकरण किया गया है, और उसी गुरू के माध्यम से उसे पाने की चेष्टा ! यकीनन इन्सान कही भी इतना प्रेम भरा समर्पण करे तो वह चीज खुदा हो जाए, और वह स्वयं..स्वयं न रहे..यानि खुद खुदा हो जाए... उसका हिस्सा बन जाए ।
इस महान प्रेम के जज्बें के साथ किसी कार्य में अपने को समर्पित कर देने वाला इन्सान उस कार्य को उसके अन्जाम तक जरूर पहुंचा देगा..क्योंकि अब यह उसका काम होगा...!
हमारी धरती के ये सुन्दर जीव जो उस प्रकृति का हिस्सा है जिसके हम, इनके अधिकारों की रक्षा का जिम्मा हमारा है, क्योंकि हमने ही उनके आवास, भोजन पर जबरियन कब्जा कर लिया...चलो उनके लिए कुछ भी बेहतर करने का हम सकंल्प ले...यह भी उसका काम होगा..और वह इसे बहुत पसन्द करेगा...और तू फ़िर उसकी निगेहबानी में होगा !
कृष्ण
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